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परसेनिलिटी का सवाल है





परसेनिलिटी का सवाल है

कमर तोड़ महंगाई के जमाने में
हम गृहस्थी का बोझ ढो रहें हैं
संतान,प्रभु जी का दिया हुआ वरदान है कहकर
जीवन की बगियां में आसूं बो रहे है
फिर भी हम बड़े मजा से
चीनी का चाय पी रहे है
क्योंकि परसेनिलिटी का सवाल है।
न्यूज पेपर पढ़ो
देश में हजारों दुर्घटनाएं हो रही है
हमें बताते हुए शर्म आती है
फिर भी गाड़ियों का रेस कम नहीं हो रही है
हमनें वाहन चालकों से पूछा कि
ऐसा क्यों कर रहे हो भाई
तो जवाब मिला जनाब
कि हम नया रंग भर रहें है
क्योंकि परसेनिलिटी का सवाल है।
बापू ने हमें सिखाया है
बुरा मत देखों
बुरा मत सुनो
बुरा मत बोलों।
हमनें एक सज्जन से पूछा
इसका पालन आज भी हो रहा है क्या भाई
तो सज्जन का जवाब आया
बेकार मुंह मत लगाओं
आज बीस का खर्चा है
और दस की है कमाई
यदि मुकद्दर का सिकंदर बनना है तो
इसको भूल जाओ भाई
क्योंकि परसेनिलिटी का सवाल है।

नूतन लाल साहू




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बेहतरीन अभिव्यक्ति और यथार्थ चित्रण

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